Tuesday, August 25, 2020

आप में से बहुत लोग शायद जगन्नाथ पुरी जा चुके हैं। और अगर नहीं भी गए हैं तो भी मैं यह यकीन के साथ कह सकता हूं कि आपने पुरी का नाम जरूर सुना होगा। क्योंकि भारत के कुछ प्रमुख तीर्थों में से एक पुरी, भगवान जगन्नाथ और रथ यात्रा के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

मार्च महीने का समय था और मेरे सुपुत्र का एनुअल एग्जाम खत्म हो चुका था । मेरे पास भी कुछ दिन घूमने लायक अवसर था। तो बहुत विचार करके हम लोगों ने सोचा कि चलो पूरी घूम करके आते हैं । वैसे पुरी का यह मेरा तीसरा ट्रिप था । लेकिन इस बार हम लोगों ने सोच रखा थाकि पुरी में कुछ अलग एडवेंचर करेंगे ।

मेरे साथ मेरी धर्मपत्नी ऋतु सिंह और मेरे पुत्र श्री अनिकेत प्रताप सिंह थे, जिन्हें मैं प्यार से शिबू बुलाता हूं। हमारे शिबू बहुत ही ज्यादा नटखट बच्चा है।

Thursday, March 20, 2014

धर्मनिरपेक्ष बनारस

रविश जी, सादर प्रणाम, आज आपका NDTV पे बनारस के ऊपर प्रोग्राम देखा। बिलकुल सही आप ने बनारस को पकड़ने की (समझने की ) कोशिश की हैं। बनारस, सिर्फ एक हिन्दू धर्म का केंद्र नहीं हैं, ये कबीर जैसे नास्तिक की भी धरती हैं, जो मरने के लिए काशी छोड़कर मगहर चले गये थे, कुछ दिनों से और चैनल्स पे, केवल इसे हिन्दुत्व से जोड़ा जा रहा था एक चैनल पे एंकर चिला रही की मोदी जी ने सॉफ्ट हिन्दुत्व को प्रोजेक्ट किया हैं, इसलिए बनारस चुना हैं, तरस ही नही, गुस्सा भी आ रहा था ऐसी घटिया एनालिसिस पे। एक खाटी बनारसी होने के नाते अपने विश्व के प्राचीनतम शहर की विरासत पे गर्व करते हुए, में इस बात को समझ नही पा रहा था की मेरा शहर कैसे, केवल हिंदुत्व की पहचान बन गया. कैसे केवल ये , मन्दिर का शहर हो गया। गौतम बुद्ध के, बनारस के सारनाथ में, दिए गये उपदेश को, रविदास जी के उपदेश को किसी भी एंकर ने बताया नही। बनारस की मस्जिदों और चर्च(बनारस में नॉर्थ इंडिया का सबसे बड़ा चर्च हैं ) के बारे में सब ऐसे मौन हो गये, जैसे की किसी ने उनके मुह पे टेप लगा दिया। यहॉ जैन मन्दिर हैं, जैन पाशर्वनाथ घाट हैं। घोर मूर्ति पूजा विरोधी, आर्यसमाज, का पाड़िनी कन्या महाविद्यालय हैं। ये एक धर्मनिरपेक्ष शहर हैं, यहॉ हिन्दुओ ने एक मुस्लिम (स्व श्री स्वेलहा अंसारी ) को अपना मेयर बनाया हैं. पर यहॉ की धर्मनिरपेक्षता आयतित नहीं हैं , शुद्ध खांटी बनारसी हैं जिसे तथाकथित धर्मनिरपेक्ष विद्वान् समझ नही पाते हैं ( जिनके अनुसार धर्मनिरपेक्षता का मतलब, भारतीय संस्कृति का मजाक उड़ाना, से ज्यादा कुछ नहीं हैं ). ये शहर बंगाली , गुजरती , महराष्ट्रियो और दक्षिण भारतियों का भी हैं, जो कई पीढ़ियों से बसे हैं, जिनकी संख्या 1 लाख के आस पास हैं। यहॉ जब आंतकवादियों ने जब संकटमोचन मंदिर में विस्फोट किया था, तो भारत रत्न बिस्मिल्लाह खान ने, उन्हें टीवी कैमरो के सामने, माँ -बहन की गलियों दी थी. ये तो रही पुरानी बाते, यदि आज की बात करे तो काशी हिन्दू यूनिवर्सिटी, तो आज देश की एक अग्रणी यूनिवर्सिटी हैं(एक मजेदार बात ये हैं की यहों के अति जागरुक अध्यापक जो अधिकांश चैनल्स पे गला फाड़ते नजर आयेगे, वो वोट नहीं देते हैं यूनिवर्सिटी कैंपस में आज तक, 15%से जायदा वोट कभी नहीं पड़ा,(चाहे मोदी लडे चाहे जोशी) जब की अधिकांश के पास बड़ी कारे हैं और बूथ भी कैंपस में ही बनता हें) कभी BHU का कोई प्रोफेसर आपसे टकराये, तो ये जरुर पूछियेगा, की वो वोट, क्यों नही देता हैं, केवल, टीवी चैनल्स पे चिल्ला-चिल्ला के, घर में घुस जाता हैं। इसी तरह यहो डीजल रेल कारखाना (DLW) है, जहा भारतीय रेल के लिए, डीजल इंजन बनता हैं, यहों भी वोटिंग प्रतिशत बेहद कम रहता हैं(20 % से कम ), चैनल वाले, तो ऐसा धर्म का तड़का लगा रहे हैं, जैसे हर बनारसी,या तो, कट्टर हिन्दू या कट्टर मुस्लिम हैं, गलत हैं ये। यहाँ भी मध्यम वर्ग रहता हैं, जिसके बच्चे US में हैं, यूरोप में हैं, बेहद नामी BHU-IT हैं, जो की IIT हो चूका हैं। AIIMS से भी बड़ा मेडिकल कॉलेज हैं ,कई मल्टीप्लेक्स हैं जिसमे बनारसी, पिज्जा खाते हैं।(दिखाया तो ऐसे जा रहा हैं , की हम बनारसी केवल पान खा के जीते हैं ) बनारसी लडकियों भी जीन्स पहनती हैं, लडको के साथ(चोरी छिपे) लडको के साथ मल्टीप्लेक्स जाती हैं, फैशन में कही से मेट्रो गर्ल्स से कम नही होगी। अतः मोदी जी की जीत को(जो की तय हैं ), हिंदुत्व के चश्मे से देखना, बिलकुल गलत हैं। आप ने सही कहा, मोदी जी ,यहाँ से जीत चुके हैं, उसका कारण सिर्फ मोदी जी की विकास पुरुष की छवि हैं। सपा बसपा की जातिगत राजनीती, यहाँ कभी जड नहीं जमा पाई, क्योंकी, आजतक बनारस लोकसभ सीट से , सपा या बसपा को जीत नहीं हासिल हुई. और अनिल शास्त्री जो १९८९ में बनारस से जीते थे, वो भी भाजपा के सपोर्ट से जीते थे(वो बीजेपी और विपक्ष के संयुक्त प्रत्याशी थे) (ये वो बताते नहीं हैं , केवल अपनी राजनीती को चमकाने के लिए मोदी जी के खिलाफ, बेसुरा गान करते, दिखाई पड़ते हैं). आप तो अति विद्वान् पत्रकार हैं , आप ने मोदी जी की भारी विजय को सूघ लिया हैं। गली गली में मोदी जी व्याप्त हैंं, इसका कारण, धर्म या जाति नहीं हैं, बनारस विकास से वंचित हैं और भ्रष्टाचार से ग्रसित हैं. जनता, विकास पुरुष से विकास की उम्मीद कर रही हैं। उसे सम्र्प्रदायिकता से कोई लेना देना नही हैं, वो तथाकथित धर्मनिरपेक्षिता का झंडा भी नही उठाना चाहता हैं, वो तो अपने पण्डे और उनके डंडे में मस्त हैं. उसने BJP को 1991 , 1996 , 1998, 1999 और 2009 में जीता चुकी हैं. 3 विधयाक BJP के हैं, जिसमे श्री श्याम देव रॉ चौधरी (जो की बंगाली दादा हैं ) 7 बार से लगातार एक ही सीट वाराणसी साउथ से, BJP के टिकट से , जीत रहे हैं (वाराणसी साउथ में मुस्लिम पापुलेशन २५% से ज्यादा हैं ). उसी तरह श्रीमती ज्योत्सना श्रीवास्तवा जी, BJP के टिकट से ,4 बार से लगातार एक ही सीट वाराणसी कैंट से जीत रही हैं (उससे पहले उनके पति बीजेपी से इसी सीट से दो बार विधयाक रह चुके हैं. वाराणसी नॉर्थ से श्री रविन्द्र जायसवाल जी बीजेपी के टिकट से जीते हैं (यहॉ भी मुस्लिम पापुलेशन ३०% से ज्यादा हैं ). अब जातीय समीकरण भी देख लिय जाये, जो की बनारस में कभी भी,बहुत प्रभावी नहीं रहा उसे भी देख लिया जाये. 2 लाख पटेल हैं, 2.5 लाख ब्राह्मण हैं, 2.0 लाख बनिये हैं, 90 हजार भूमिहार हैं, 65 हजार राजपूत हैं, जो की बीजेपी का , अपना वोट बैंक हैं और इस बार पटेल और कुर्मी की पार्टी (अपना दल ) का विलय बीजेपी में होने की सभांवना हैं, तो पटेल वोट तो बीजेपी को ही मिलेगा (मोदी जी भी तो obc हैं ). सपा का खेल 2 .5 लाख मुस्लिम और एक लाख यादव पे टिका हैं, और बसपा 80 हजार SC /ST के भरोसे उतरती हैं. 90 हजार obc(जैसे की भर , राजभर , मल्लाह , कहार इत्यादि) सपा और बसपा के साथ हैं। वाराणसी की सड़के टूटी हैं, भ्रष्टाचार इतना, की सड़क बनती हैं, तो 10 दिन में फिर टूट जाती हैं पर BJP के तीनो विधायक, अपनी सेवा भाव के कारण, लोकप्रिय हैं , बीजेपी के मेयर भी काफी एक्टिव हैं। श्री श्यामदेव 7 बार, लगातार, विधयाक होने के बाद भी simple जीवन जीते हैं । जोशी जी बनारस को समझ नहीं पाये, जनता ने नकार दिया. यहॉ तक की , ब्राह्मण बहुल मोहल्ले में भी उनकी , हूटिंग हो जाती थी। बनारस में, केवल इस बात पे सट्टा लग रहा हैं, की मोदी जी 2 लाख वोट से जीतेंगे या (सिर्फ) 1 लाख वोट से.

Thursday, October 4, 2012

मैं अपने 5 साल के बेटे शिबू के साथ शोले देख रहा था . ये फिल्म मैंने  नहीं लगाई  थी.  ये शिबू ने रिमोट कंट्रोल  से खुद लगाई  थी । ये फिल्म मेरे खानदान क़ी पाँचवी पीढी देख रही थी। पिछली 4  पीढ़ी ने इस फिल्म को बहुत पसंद किया था. अब  पाँचवी पीढी क़ी बारी  थी। ये पीढी दोरेमन  और शिन्चन वाली पढ़ी हैं. मैंने शिबू से बोला, बेटा ये बड़ी पुरानी फिल्म  हैं छोड़ो कुछ और देखते हैं। पर शिबू के जवाब ने मुझे हैरान कर दिया. वो बोला पापा फिल्म तो बहुत शानदार हैं। उसका कमेन्ट और अनाल्य्सिस  तो और भी गजब का था। उसका पहला कमेन्ट था पापा ये जय और वीरू क्या बहुत अच्छे  दोस्त थे. ये गब्बर क्या लादेन से भी अधिक खतरनाक  था.  पहले प्रशन  का जवाब आसान  था पर  दूसरा उताना ही  परेशांन करने वाला । यदि मैं  लादेन को कहता तो  pseudosecularist नाराज हो जाते  क्योंकि उनके लिए तो लादेन, "LADEN जी"  हैं , गब्बर आज तक बेचारा गब्बर ही रह गया क्योंके वो तो कोई वोट बैंक कम्युनिटी से belong   करता  ही नहीं था.  तो मैंने प्रशन को ही टाल दिया तब तक दूसरा प्रशन आ गया   गब्बर ने जब ठाकुर का हाथ काट दिया तो दुबारा हाथ कैसे उग आया ( फिल्म फ्लाश्बैक में चली  गयी थी, शिबू समझ नहीं पाए ) . खैर   मैंने ये समझा दिया पर और प्रश्न  आ गये. पापा जय और वीरू दोनों ही लड़की से बात कर रहे हैं , पर  शादी कौन करेगा. मैंने भी  चुटकी ली,  पता नहीं, देखते हैं,  कौन पटा पता हैं, ईशा देओल  क़ी मम्मी  को।  पापा, गब्बर ने सब को मारा, ठीक पर मेरे  जैसे प्यारे छोटे बचे   को मार दिया, ये तो बहुत गन्दा आदमी हैं . पापा ये मौसी तो नाक से बोलती हैं। पापा कालिया तो बहुत मुर्ख था उसे तो गब्बर को उडा  देना चहिये था. पिक्चर ख़तम हो गयी शिबू सोने की  तैयारी   करने लगे पर वो सो नहीं रहे थे सुबह स्कूल जाना था, मैंने बोला सो जाओं, नहीं तो गब्बर आ जायेगा . और ये तो कमाल  हो गया शिबू सो गया . क्या बात हैं शोले 40 साल बाद भी प्रभावशाली  हैं।  सिप्पी जी की  जय हो, आप अमर हो गए हो , शोले  बना कर के.